All about Internet details in hindi

All about Internet

इंटरनेट का सामान्यता अर्थ इंटरकनेक्टेड (Interconnected) नेटवर्क है Internet का अर्थ “अंतरजाल“ होता है ! इन्टरनेट हजारों-लाखों कम्प्यूटरों का एक महाजाल है ! इंटरनेट से जुडे हुए प्रत्येक कम्प्यूटर की एक विशेष पहचान होती हैं इस विशेष पहचान (Unique Identity) को IP Address कहा जाता हैं,

IP Address गणितिय संख्याओं का एक Unique समूहों होता हैं (जैसे 102.145.175.232) जो उस कम्प्यूटर के स्थान को बताता हैं !

IP Address को Domain Name Server तथा DNS (Domain Name System) द्वारा एक नाम दिया जाता हैं जो उस IP Address को दर्शाता हैं उदाहरण:- https://thevivekam.com एक Domain Name हैं जो किसी कम्प्यूटर के उस स्थान का नाम हैं, जिसे डोमेन नेम, सर्वर किसी IP Address अर्थात उस कम्प्यूटर से जोड देते हैं !

इन्टरनेट का काम करने तरीका:-

इन्टरनेट सेटेलाईट के माध्यम से भी चलाया जाता है मगर हम जिस इन्टरनेट का उपयोग करते है वो सेटेलाइट के माध्यम से नहीं बल्कि Opticle Fibres Cable द्वारा हम तक पहुँचता है, Opticle Fibres Cable को सबमरीन केबल के नाम से भी जाना जाता है !

हम जिस इन्टरनेट का उपयोग करते है वो तीन कम्पनियों के माध्यम से होते हुए हम तक पहुँच पाता है. इन तीनों कंपनियों को हम तीन भाग में विजभित कर लेते है.

Network 1,Network 2, Network 3

Network 1 में बह कंपनी है जिन्होंने ऑप्टिकल फाइबर केबल का नेटवर्क समुद्र के अन्दर से पूरे विश्व भर में फैला रखा हो इन्ही केबलस के माध्यम से दुनिया के सारे सर्वर एक दूसरे से जुड़े रहते है.

Network 2 में टेलिकॉम कंपनियां शामिल होती हैं जैसे जियो, एयरटेल जैसी कंपनियां है जिनके माध्यम से इन्टरनेट हम तक पहुँचता है !

जबकि Network 3 में लोकल एरिया की छोटी छोटी कंपनियां शामिल होती है !

जब Network 3 कि कम्पनियाँ Network 2 से डाटा खरीदती है

Network 2 कि कम्पनियाँ Network 1 की कंपनी से प्रति GB के हिसाब से डाटा खरीदती है हम लोग Network 2 की कंपनियों से डाटा खरीदते है.

Network 2 की कम्पनियाँ लैंडलाइन, ओप्टिकल फाइबर, केबल द्वारा अपने टावर को Network 1 से जोड़कर रखते है और वायरलेस नेटवर्क के माध्यम से इन्टरनेट कि सेवा हम तक पहुंचाते है !

इंटरनेट का इतिहास

सन 1960 में शीत युद्ध के दौरान सूचनाओं के आदान प्रदान करने की आवश्यकता हुई ! इसी प्रकार आवश्यकता को पूरा करने के लिए दशा संचार के लिए एक नेटवर्क की खोज हुई, जिसे आज हम इन्टरनेट कहते है ,इनमें कई कंप्यूटरों को आपस में जोड़ कर सूचनाओं का आदान प्रदान करना था, जिससे कि सेना को जरुरी जानकारी बहुत जल्दी मिल सके !

1965 में, एक MIT वैज्ञानिक ने एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में जानकारी भेजने का एक तरीका बनाया जिसको (Packet Switching) कहा गया। पैकेट स्विचिंग डाटा को ब्लाक या पैकेट में हिस्से करके डाटा ट्रान्सफर करता था !

इसकी शुरुआत सबसे पहले अमेरिका के रक्षा विभाग ARPA (Advance Research Projects Agency)द्वारा की गई। जिसके उपरांत इसे ARPANET का नाम दिया ! ARPANET में एक computer से दूसरे कंप्यूटर से जोड़ने के लिए NCP यानि कि (Network Control Protocol) का प्रयोग होता है !

29 October 1969 को ARPAnet के माध्यम से पहला मैसेज “LOGIN” लिखा जो कि सफल हुआ और इसमें पहले दो अक्षर LO का ही डाटा ट्रान्सफर हुआ !

1969 के अंत तक, ARPAnet से सिर्फ चार कंप्यूटर ही जुड़े, लेकिन 1970 के दौरान यह नेटवर्क लगातार बढ़ता गया।

1971 में, इसने University of Hawaii के ALOHAnet को जोड़ा और दो साल बाद इसने लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज और नॉर्वे के रॉयल रडार प्रतिष्ठान में नेटवर्क को जोड़ा गयाजै से ही इस नेटवर्क से बहुत सारे कंप्यूटर जुड़ते गए जिससे इसे वैश्विक स्तर पर एकीकृत करना कठिन होता चला गया ! Email को 1971 में सबसे पहले Ray Tomlinson ने भेजा था।

1970 के दौरान विंटन सेर्फ कंप्यूटर वैज्ञानिक ने दुनिया के सभी छोटे-नेटवर्कों पर एक-दूसरे के साथ संचार करने के लिए सभी कंप्यूटरों के लिए एक तरीका विकसित करके समस्या का हल निकालना शुरू किया था। उन्होंने अपने इस आविष्कार को “ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल” TCP कहा।

बाद में, उन्होंने IP प्रोटोकॉल जोड़ा,आज हम जिस इन्टरनेट का उपयोग करते है उसमें TCP/IP Protocol का ही प्रयोग होता है !

विंट सर्फ (Vint Cerf) और रोबर्ट ई. काहन (Robert E. Kahn) ने 1974 में एक पेपर छापा जिसके बाद “Fathers Of The Internet” के नाम से जाना जाने लगा ! इसी उपरांत Vint Cerf को इन्टरनेट का जनक कहा जाता है

भारत में इन्टरनेट की शुरुआत कब हुई

भारत में इन्टरनेट की शुरुआत 14 अगस्त 1995 को हो गई थी लेकिन आम जनता में इसे 15 अगस्त 1995 को “विदेश संचार निगम लिमिटेड” VSNL द्वारा चालू किया गया था। तब इन्टरनेट का इस्तेमाल महत्वपूर्ण सूचनाओं के आदान प्रदान करने के लिए किया गया था और इसकी गति मात्र 8-10 kbps थी।

जब भारत में इन्टरनेट की पारंभ हुआ तब इससे मात्र 20और 30 कंप्यूटर ही जुड़े थे और इन्टरनेट कनेक्शन का खर्चा भी अत्यधिक था, और 9-10 kbps स्पीड के इन्टरनेट का महीने का खर्चा 500-600 रूपये के आसपास था, जो कि उस समय के हिसाब से अत्यधिक था !

आम जनता के लिए साल 1989 में इंटरनेट को शुरू किया गया, जिससे इस्तेमाल बड़े स्तर पर लोगों द्धारा संचार और रिसर्च के लिए किया जाना लगा।

www वर्ल्ड वाइड वेब की खोज से इंटरनेट को साल 1990 में एक नई दिशा दी गई। इसके बाद इस क्षेत्र में तेजी से विकास होता चला गया।

शिक्षा एवं रिसर्च से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए हाई स्पीड नेटवर्क को विकसित करने के उद्देश्य से वर्ष 1991 में ‘नेशनल रिसर्च एंड एजुकेशन नेटवर्क’ (NREN) की स्थापना हुई।

इसके पश्चात 1993 में पहले ग्रोफिक वेब ब्राउजर और मोजाइक सॉफ्टवेयर ( MOSAIC) सॉफ्टवेयर की खोज ने इंटरनेट के विकास को गतिशील किया।

इंटरनेट की दुनिया में तेजी से नए-नए अविष्कार होते गए, आज दुनिया के सभी देशों के नेटवर्क आपस में जुड़ गए है ! जिससे सूचना का आदान-प्रदान, वित्तीय लेनदेन समेत तमाम ऐसी चीजें सेंकेण्डों में हो जाती है !

इसके उपरांत इंटरनेट को सबसे पहले बड़े बड़े शहरों तक पहुँचाया गया और 1996 में Rediff Mail जैसी वेबसाइट की शुरुआत हुई जिसके द्वारा हम अपनी खुद की Email Id मुफ्त में बना सकते थे।

इसे लागू कर दिया गया। इसके बाद Yahoo India और Msn जैसे वेबसाइट भी वर्ष 2000 के समय मे India में लांच हो गए।

इन्टरनेट के कितने प्रकार का होता है:

Internet

1. यह एक पब्लिक नेटवर्क है, इसे दुनिया का कोई भी व्यक्ति कहीं चला सकता है !

2. इन्टरनेट को चलाने के लिए किसी यूजर पासवर्ड कि जरूरत नहीं होती है !

3. इसका उपयोग कोई सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है !

4. यह बहुत सारे computers का नेटवर्क होता है !

5.इसकी सिक्योरिटी (Security) यूजर द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली डिवाइस पर निर्भर रहती है !

 

Intranet

यह एक प्राइवेट नेटवर्क है इसका उपयोग निजी कंपनीयां तथा संस्थाएं अपनी निजी जानकारी को सुरक्षा के लिए करती है ! इंट्रानेट को चलाने के लिए यूजर पासवर्ड कि जरूरत होती है ! इसको केवल एक संस्थान द्वारा चलाया जाता है ! इसमें केवल एक ही संस्थान के कंप्यूटरों का नेटवर्क जुड़ा होता है ! इसकी कि सिक्योरिटी फायरवाल पर निर्भर करती है !

Extranet

यह भी प्राइवेट नेटवर्क है. यह पब्लिक नेटवर्क की सहायता से डाटा भेजने में माध्यम का काम करता है एक्सट्रानेट को भी चलाने के लिए यूजर पासवर्ड कि आवश्यकता रहती है ! इसका प्रयोग दो या दो से अधिक संस्थाओं के बीच डाटा स्थानांतरित करने के लिए होता है ! इसमें दो या दो से अधिक संस्थानों के कंप्यूटर आपस में जुड़े होते है ! Extranet की सिक्योरिटी Internet और Intranet के फायरवाल पर निर्भर रहती है !

Internet Equipment:-

वेब ब्राउसर (Web Browser):

वेब ब्राउसर एक Application Software है जो वल्र्ड वाइड वेब (www) से सूचना तथा डाटा प्राप्त करने तथा उसे उपयोगकर्ता के कम्प्यूटर पर प्रदर्षित करने का कार्य करता है। वेब ब्राउसर को सर्च इंजन (web search engine) भी कहते है।वल्र्ड वाइड वेब से सूचना प्राप्त करने के लिए वेब ब्राउसर पर Uniform Resource Identifier (जैसे- Google.com) डाला जाता है।

कुछ प्रचलित वेब ब्राउसर जिनके नाम हैं-

Mozilla Firefox

Google Chrome

वेब सर्वर (Web Server):

वह कम्प्यूटर जो वेब पेज को संग्रहित करता है तथा नेटवर्क से जुड़े अन्य कम्प्यूटरों के अनुरोध पर उन्हें वेब पेज उपलब्ध कराने का काम करता है,वेब सर्वर कहलाता है।

माॅडेम (Modem):

यह Modulator-De-Modulator का संक्षिप्त रूप है। कम्प्यूटर डिजिटल संकेत उत्पन्न करता है जबकि संचार माध्यम पर केवल एनालाॅग संकेत ही भेजा जा सकता है। माॅडेम वह युक्ति है जो कम्प्यूटर के डिजिटल संकेतों (Digital Signals) को एनालाॅग संकेत में बदलकर संचार माध्यम पर भेजता है तथा आने वाले एनालाॅग संकेतों को डिजिटल संकेतों में बदलकर कम्प्यूटर के प्रयोग के अनुसार बनाता है।

माॅडेम के प्रकार (Types of Modem):

बाहरी संरचना के आधार पर माॅडेम दो प्रकार के होते हैं-

(a) आंतरिक माॅडेम (Internal Modem):

इसे सिस्टम यूनिट के अंदर ही स्थापित किया जाता है।

(b) बाहरी माॅडेम (External Modem):

इसे सिस्टम यूनिट के बाहर स्थापित किया जाता है।

डोमेन नेम सिस्टम (Domain Name System)

यह नेटवर्क पर कम्प्यूटर, सर्वर या वेबसाइट के निश्चित नामकरण की प्रणाली है ताकि उसे अलग पहचान दी जा सके। यह सामान्य भाषा में दिए गए नाम को अंकीय पता (IP Address) में बदलता है तथा उससे संपर्क भी स्थापित करता है।

उदाहरण के लिए, यदि हम इंटरनेट पर www.santulanlife.com लिखते हैं तो कम्प्यूटर इसे अंकीय पता 192.0.32.10 में बदलकर इस वेबसोइट को खोजता है।

डोमेन नेम (Domain Name)

नेटवर्क में प्रत्येक कम्प्यूटर को एक अलग नाम दिया जाता है जिसे डोमेन नेम कहा जाता है। डोमेन नेम के दो भाग में वर्गीकृत किया है :-

(a) नाम (Name)

(b) एक्सटेंशन (Extension Name)

यह नाम कुछ भी रखा जा सकता है, मगर एक्सटेंसन (extension) उपलब्ध विकल्पों में से ही कोई एक हो।

जैसे-santulanlife.com में santulanlife नाम है जबकि .com एक्सटेंशन है।

डोमेन नेम में अंक, अक्षर या दोनों हो सकते हैं। इसमें अधिकतम 64 कैरेक्टर हो सकते है।

इसमें एकमात्र विशेष कैरेक्टर प्रयोग किया जा सकता है। कुछ प्रमुख डोमेन नेम इस प्रकार है–

.com – Communication

.net – Network

.gov – Government

.edu – Education

.org – Organisation

URl (Uniform Resource Locator)

यह कम्प्यूटर नेटवर्क की एक व्यवस्था है जो हमें बताता है कि इच्छित सूचना कहां उपलब्ध है और उसे कैसे प्राप्त करना है ! www पर किसी वेब पेज का एड्रेस URL का एक उदाहरण है।

URL में निम्नलिखित शामिल होता है-

Protocol का नाम

Colon एवं ://(Slash)

Host Name (IP Address)

Domain Name

जैसे –http://www.google.com

TCP ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल (Transmission Control Protocol ) का प्रयोग कर इंटरनेट पर दूर कम्प्यूटर के बीच संचार स्थापित किया जाता है। TCP डाटा को पैकेट्स में विभाजित कर उन्हें भेजने का रास्ता तय करता है। यह प्राप्त किए गए पैकेट्स को पुनः व्यवस्थित कर डाटा में परिवर्तित भी करता है। www, ईमेल, फाइल ट्रांसफर आदि इसके कुछ व्यवहारिक उपयोग है।

इंटरनेट प्रोटोकाल (Internet Protocol)

इंटरनेट पर संचार व्यवस्था सुनिश्चित करता है। इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर को एक विशेष अंकीय पता (Numerical Address) दिया जाता है जिसे आईपी एड्रेस (IP Address) कहते है।

वर्तमान में Internet Protocol Version 6 (IPv6) का उपयोग किया जा रहा है जिसमें 128 बिट एड्रेस का प्रयोग होता है !

इंटरनेट के प्रोटोकॉल्स:

TCP (Transmission Control Protocol):

इस प्रोटोकॉल का काम इन्टरनेट पर data transfer करना होता है। यह डाटा को छोटे-छोटे पैकेट्स में विभाजित हो कर नेटवर्क के जरिये destination तक send कर देता है जहाँ इसे वापस जोड़ लिया जाता है।

IP आईपी ​​(इंटरनेट प्रोटोकॉल):

यह TCP के साथ ही मिलकर काम करता है और packets को ट्रान्सफर करने के लिए IP का उपयोग एक तरह से addressing के लिए किया जाता है जिसके जरिये final destination तक data को पहुँचाया जा सके है।

HTTP (हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल):

यह client और server के बीच connection समन्वय स्थापित करता है और world wide web document exchange करने के काम आता है। आप अपने browser पर किसी भी प्रकार की website को इसी प्रोटोकॉल की सहायता से पहुंच पाते हैं।

FTP (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल):

इसका प्रयोग client और FTP server के बीच फाइल File को ट्रान्सफर करने के लिए होता है किसी अन्य method के मुकाबले FTP द्वारा तीव्र गति से फाइल भेजता करता है !

SMTP (सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल):

इसका नाम से पता चल रहा है इसका उपयोग इन्टरनेट पर ईमेल भेजने और प्राप्त करने के लिए होता है। जब आप अपने डिवाइस से मेल सेंड करते हैं तो वह SMTP (Simple Mail Transfer Protocol)के जरिये मेल सर्वर(Mail Server)तक पहुँचता है।

TELNET (टेलनेट)

किसी एक कंप्यूटर को दूर से ही किसी अन्य कंप्यूटर से संचालित किया जा सकता है इसके लिए remote login की आवश्यकता होती है और इस प्रकार के connection को स्थापित करने के लिए telenet protocol का होना बेहद जरूरी है।

Teamviewer software इसका एक अच्छा उदाहरण है।

Ethernet ईथरनेट प्रोटोकॉल:

इस प्रोटोकॉल का अत्यधिक उपयोग होता है । स्कूल, कॉलेज, ऑफिस आदि में LAN (Local Area Network) connection का उपयोग होता है और इस प्रकार के कनेक्शन के लिए Ethernet का प्रयोग होता है किसी computer को LAN से जोड़ने के लिए उसमें (NIC) Ethernet Network Interface Card का होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

इसके अलावा और भी network protocols हैं जैसे:

IMAP (Internet Message Access Protocol)

POP (Post Office Protocol)

MAC (Media Access Control protocol)

प्रोटोकॉल के फायदे

अलग-अलग hardware को नेटवर्क से जोड़ कर और उनके बीच information share करना और instruction देना काफी मुश्किल काम होता है इसके लिए जरूरी है की sender और receiver दोनों एक ही भाषा में communicate करें और यह काम प्रोटोकॉल द्वारा ही संभव है।

इसके international standard की वजह से कई सारे computers को एक साथ जोड़ा जा सकता है ताकि उनके बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सके चाहे वे दुनिया के किसी भी स्थान में हों।

इंटरनेट कनेक्शन के प्रकार

इंटरनेट की सहायता से हम घर बैठे अपने कंप्यूटर पर दुनिया भर की सूचनाएं सेकंड में हासिल कर सकते हैं। लेकिन कंप्यूटर पर इंटरनेट सुविधा प्राप्त करने के लिए हमें इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है। इस दौर में डेस्कटॉप से लेकर लैपटॉप,मोबाइल फोन तक में इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल होता है !

यह इंटरनेट चलाने वाले पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार के इंटरनेट कनेक्शन से जुड़ना चाहता है।

कुछ प्रमुख कनेक्शन इस प्रकार हैं –

1. Dial Up Connection – इसमें में उपभोक्ता का कंप्यूटर फोन लाइन के माध्यम से जोड़ा जाता है। इन्हें एनालॉग (Analog) कनेक्शन भी कहते है। इस कनेक्शन के जोड़ने के बाद फोन का इस्तेमाल करना संभव नहीं होता। इसकी गति धीमी होने के कारण अब इस कनेक्शन का प्रचलन लगभग खत्म हो चुका है।

2. Broadband Connection – ब्रॉडबैंड कनेक्शन सबसे अधिक तीव्र गति वाला इंटरनेट कनेक्शन है। इसमें भारी मात्रा में सूचनाएं भेजने के लिए एक से अधिक डाटा चैनलों का उपयोग होता है ब्रॉडबैंड, ब्रॉड बैंडविथ (Broad Bandwidth) का संक्षिप्त रूप है। केबल और टेलीफोन कंपनियां ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध कराती हैं।

3. DSL Connection – डीएसएल कनेक्शन की फुलफॉर्म है, डिजिटल सब्सक्राइबर लाइन (Digital Subscriber Line) इस कनेक्शन में उपभोक्ता के घर में उपलब्ध दो तारों वाली टेलीफोन लाइन का उपयोग होता है। इससे यह सुविधा लैंडलाइन कनेक्शन के साथ ही उपलब्ध हो जाती है। डायल अप कनेक्शन से इस व्यवस्था में इंटरनेट के इस्तेमाल के दौरान भी उपभोक्ता लैंडलाइन फोन का भी प्रयोग कर सकता है।

4. Wireless Connection इसके नाम से ही स्पष्ट पता चल रहा है कि इस तरह के कनेक्शन में तारों का प्रयोग नहीं होता है इसमें केबल और टेलीफोन नेटवर्क के बजाय रेडियो तरंगों (Radio Frequency) का प्रयोग किया जाता है। इस कनेक्शन की सबसे बड़ी सुगमता यह है कि इसमें कनेक्शन हमेशा ऑन रहता है।

5. Mobile Connection -संचार क्रांति के इस दौर में इंटरनेट हर उपयोगकर्ता के हाथों तक आसानी से पहुंच रहा है इसका माध्यम बना है मोबाइल फोन। जीएसएम (GSM) 3जी, 4-जी 5-जी जैसी नयी तकनीकों की सहायता से अब हम मोबाइल, टैबलेट पर आसानी से इंटरनेट सुविधा हासिल कर सकते हैं।

6. सेटेलाइट इंटरनेट कनेक्शन Satellite Internet Connection

इस प्रकार का कनेक्शन का उपयोग सेटेलाइट के माध्यम से किया जाता है सेटेलाइट सिग्नल के द्वारा कनेक्शन डाटा को यूजर तक पहुंचता हैं।

7.Leased line connection :

यह connection भी DSL के समान ही high speed वाला connection होता है। जिसमें एक या एक से अधिक telephone line को किसी युजर के द्वारा अधिक समय के लिये Lease पर लिया जाता है। जिसके कारण यूजर को एक समान speed पर internet connection उपलब्ध रहता है यह leased line 24 घंटे ISP के server से connected रहती है एवं इसे अन्य किसी user के द्वारा उपयोग मे नहीं लाया जा सकता है| leased line मे भी DLS modem का उपयोग किया जाता है।

8.ISDN (Integrated subscribe Digital Network) :

ISDN के द्वारा fast internet connection प्राप्त होता है। इसमें high speed internet के लिए fiber optics cable का प्रयोग होता है।

यह internet connection बहुत अधिक लागत बाला होता है। इसमें internet speed 1 GBPS तक होती है।

9.VSAT (Very Small Aperture Terminal) :

किसी भी प्रकार के Internet connection को cable या wire कि माध्यम से सीमित मात्रा मे ही user को उपलब्ध कराया जाता है ! इस समस्या को दूर करने के लिये wireless connection तकनीक का उपयोग किया जाता है। VSAT तकनीक में satellite के माध्यम से communication signal को user तक पहुचाया जाता है VSAT मे एक antina होता है जो कि आकार मे 1 meter या उससे भी कम होता है जिसके कारण ही इसे very small terminal कहा जाता है।

इसी antina के माध्यम से satellite से मिलने वाले signal को user तक पहुंचाए जाते है user प्राप्त signals का उपयोग करके ISP से connection स्थापित करता है VSAT का उपयोग करके कोई भी कम्पनी अपना स्वयं का Network किसी भी भौगोलिक सीमा मे बना सकती है। विश्व मे पहला communication satellite TELSTAR था।

 

 

 

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